मिशन चंद्रयान की टीम में एक छत्तीसगढ़ का बेटा भी शामिल है. बिलासपुर के बेटे विकास श्रीवास चंद्रयान को चांद तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है. चंद्रयान-3 को लेकर जो रॉकेट उड़ा था उसका ढांचा बनाने वाली टीम में विकास शामिल हैं.
बिलासपुर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई करने वाले इंजीनियर विकास श्रीवास इसरो में इंजीनियर साइंटिस्ट है. ऐसे में विकास के माता-पिता को चंद्रयान-3 की लैंडिंग से दोगुनी खुशी हो रही है. जिस दिन यह मिशन शुरू हुआ है, उस दिन से यह परिवार कामयाबी की कामना कर रहा है.
विकास के पिता दिनेश श्रीवास रिटायर्ड उद्यानिकी अधिकारी हैं. वहीं, उनकी मां भावना श्रीवास लेखिका हैं. उनका कहना है कि, यह क्षण हमारे लिए अहम है.
सरकंडा के बंगालीपारा में रहने दिनेश श्रीवास के होनहार बेटे विकास मिशन चंद्रयान-3 टीम के सदस्य हैं. उन्होंने बताया कि विकास का प्राइमरी एजुकेशन तखतपुर में हुआ है. बाद में उसने हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी की पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर से की.
फिर गर्वनमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के लिए दाखिला लिया. इसके बाद विकास का सिलेक्शन 2007 में ISRO में वैज्ञानिक अभियंता के पद पर हुआ. साल 2007 से विकास तिरुवंतपुरम स्थित इसरो केंद्र में कार्यरत है.
इस दौरान विकास ने बताया कि, वे चंद्रयान-3 में टीम के सदस्य है. चंद्रयान को चंद्रमा पर भेजने के लिए जिस एलएम-3 व्हीकल और रॉकेट का ढांचा तैयार किया गया है, उसे बनाने वाली टीम के सदस्य रहे.
उन्होंने बताया कि मिशन लॉन्च होने के बाद से उनका पूरा ध्यान मिशन की कामयाबी पर टिका रहा. लगातार इसके लिए प्रयास कर रहे हैं. उम्मीद ही नहीं विश्वास भी था कि हम मिशन चांद में कामयाब होंगे.
विकास ने बताया कि उनके दादा फागूराम श्रीवास रिटायर्ड प्राचार्य हैं. बचपन में उनके दादा हमेशा अंतरिक्ष विज्ञान की बातें बताते थे और इसके लिए प्रेरित करते थे. उनकी कहानियों को सुनकर विकास शुरू से ही अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई में रूचि रखने लगा था. विकास का कहना है कि उनके दादा की प्रेरणा से ही आज वह इसरो में पदस्थ है.
विकास के पिता दिनेश बताते हैं कि विकास शुरुआत से ही अंतरिक्ष विभाग में जाने के लिए बेताब था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उसने गेट का एग्जाम दिया, जिसके बाद उसका चयन परमाणु ऊर्जा आयोग में हो गया था. लेकिन, एक महीने काम करने के बाद ही वह अंतरिक्ष विज्ञान में जाने के लिए उसे छोड़ दिया और फिर अंतरिक्ष विज्ञान विभाग की तैयारी में जुट गया. इसमें उसे सफलता मिली और इसरो में उसे पोस्टिंग मिल गई.