गरियाबंद के उदंती सीता नदी अभयारण्य में एलीफेंट अलर्ट ऐप के इस्तेमाल से हाथियों के हमले कम हुए हैं. हाल ही में हाथियों ने यहां 3 लोगों को मार डाला था, जिसके बाद वन विभाग के अफसर ने लोगों की सुरक्षा को लेकर एक अलर्ट ऐप बनाया. अब इस इलाके में पिछले 7 महीने से कोई जनहानि नहीं हुई है. G मेनुअल डाटा और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टेक्नोलॉजी को कम्बाइन कर हाथी अलर्ट ऐप बनाया है.
ऐप हाथियों की मौजूदगी को 10 किमी सर्कल के गांवों में एक साथ अलर्ट कर देता है. ऐप की सफलता को देखते हुए प्रदेशभर के प्रभावित जिले में सिस्टम को लागू किया जाएगा. 12 जिले में प्रशिक्षण पूरा हो चुका है, जिसमें 6 प्रभावित जिले के 180 गांव रजिस्टर्ड हो चुके हैं. अब तक 89, 5000 मैसेज ट्रिगर ऐप कर चुका है. पिछले दो साल में अभ्यारण्य क्षेत्र में हाथियों ने 10 से ज्यादा लोगों को मार डाला.
इस सफलता में उदंती सीतानदी अभ्यारण्य के उपनिदेश वरुण जैन और उनकी टीम की अहम भूमिका रही. 2017 बैच के IFS वरुण जैन की पोस्टिंग बतौर उपनिदेशक 2022 में हुई. उदंती अभ्यारण्य में बढ़ रहे हाथियों के हमले को रोकने की चुनौती के बीच अफसर को उपनिदेशक की कमान मिली.
11-12 अप्रैल 2022 को 32 हाथियों का दल ओडिशा से सीतानदी रेंज में प्रवेश किया. 24 घंटे में ही 3 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. उस दिन के बाद से वरुण जैन ने हाईटेक अलर्ट और ट्रैकिंग सिस्टम बनाने की ठान लिया, ताकि जनहानि पर रोक लग सके.
जैन उपनिदेशक बनने से पहले फॉरेस्ट मैनेजमेंट एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम (FMIS) में बतौर प्रभारी CF पोस्टेड थे, तभी ODK app का उपयोग शुरू हो गया था. टेक्नोलॉजी में पकड़ रखने वाले वरुण जैन ने FMIS में लीड करने वाले सतोविषा समाज्दार IFS, प्रोग्रामर ठाकुर विक्रम सिंह और अंकित पटेल के साथ मामले की गंभीरता पर चर्चा कर अलर्ट ऐप बनाने की कार्य योजना तैयार की.
जैन ने बताया कि हाथी जंगलों में घूमते थे. उनकी लोकेशन की जानकारी लेकर तत्काल लोगों को अलर्ट भी करना था. ऐसे में डाटा एंट्री के लिए गूगल के ओपन डेटा किट का इस्तेमाल किया गया. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी (AI) का इस्तेमाल कर एलीफेंट अलर्ट ऐप बनाया गया. जो किसी भी एंड्रॉयड फोन में वर्किंग करता है. फरवरी 2023 में इसका ट्रायल उदंती सीता नदी अभयारण्य में शुरू किया गया.
ऐप के इस्तेमाल करने से पहले पिछले दो साल में 6 लोगों की मौत अभ्यारण्य क्षेत्र में हुई थी. फरवरी के बाद से एक भी मौत नहीं हुई है. इसके पीछे इस ऐप की भूमिका के अलावा अभयारण्य के प्रभावित 5 रेंज के 1200 स्क्वेयर किमी एरिया में 24 घंटे निगरानी कर रहे 20 हाथी मित्र और 70 से ज्यादा वन कर्मी अफसरों की कड़ी मेहनत भी शामिल है.
AI अंतर्गत सॉफ्टवेयर और प्रोग्राम को क्लाउड सर्वर पर होस्ट किया गया है. इसमें कुछ ऐसे सॉफ्टवेयर हैं, जो एलीफेंट अलर्ट ऐप से जुड़े हैं. वह ऑटोमेटिक काम करना शुरू कर देते हैं. रिहायशी इलाके में हाथी के दिखते ही हाथी मित्र ऐप पर लोकेशन लोड कर देते हैं. इसके बाद ऐप क्लाउड सर्वर से गूगल मैप के जरिए लोकेशन ट्रेस कर लेता है, फिर संबंधित इलाके की लिस्ट बनाता है.
ऐप को गूगल मैप की API लिंक से जोड़ा गया है, जो एलीफेंट ऐप सर्वर के साथ है. ऐप लोकेशन के अनुसार 10 से 15 किमी के सर्कल में आने वाले रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर मैसेज और कॉल एक साथ करता है.
मोबाइल रिचार्ज की तरह ही इस ऐप के एवज में नेटवर्क के लिए प्रति कोल 90 पैसे का भुगतान करना होता है. फिलहाल विभाग अपने रेंज में 3 लाख रुपए का रिचार्ज कराया है, जिसमें 3 लाख कॉल और मैसेज फ्री है. ऐप को बनाने में भी मात्र 3 लाख खर्च आया है. इसका 1 कॉम्पोनेन्ट (ODK) ओपन सोर्स है.
वरुण जैन ने बताया कि इस ऐप के जरिए हाथियों के ठिकानों की जानकारी मिल रही है. अभयारण्य में वन भैंसे की निगरानी, आगजनी का लोकेशन ट्रैक, गोद लिए गए वृक्षारोपण एरिया की मॉनिटरिंग के अलावा कांगेर घाटी में राजकीय पक्षी मैना की ट्रैकिंग भी इस ऐप से हो रही है. इससे वन और वन्य प्राणियों के लिए कार्ययोजना बनाने में भी सटीक मदद मिल रही.
गरियाबंद के अलावा हाथी प्रभावित कोरबा, धर्मजयगढ़ और रायगढ़ वन मंडल में इसका उपयोग हो रहा है. ऑनलाइन रिकॉर्ड के मुताबिक ऐप में अब तक प्रभावित 6 जिलों के 180 गांव में 2500 से ज्यादा ग्रामीणों, सरपंचों और कोटवारों का पंजीयन हो चुका है. 1161 वनकर्मियों के मोबाइल में ऐप इंस्टॉल है.
अब तक ऐप 9 लाख से ज्यादा मैसेज ट्रिगर कर चुका है. रजिस्ट्रेशन का दायरा बढ़ाने वन विभाग प्रभावित जिलों में लगातार वर्कशॉप का आयोजन कर रहा है. अभी तक 12 जिले में इसकी ट्रेनिंग टेक्निकल टीम दे चुकी है. वनकर्मी अफसरों के अलावा ग्रामीण इलाके में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी जोड़ा जा रहा है.