बात 31 साल पहले की है. हिंदू संगठनों के आह्वान पर 1993 में दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में देशभर से लाखों कारसेवक भगवान राम की नगरी अयोध्या में जुटे थे. कारसेवकों में बस्तर के लोग भी शामिल थे.
इनमें जगदलपुर से 20 किलोमीटर दूर बकावंड क्षेत्र के कुछ स्कूली बच्चे भी थे जो उस समय मिडिल और हाईस्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. तब इनकी आयु 15 से 18 साल के बीच थी. ये सभी स्कूल से भागकर गए थे. आदिवासी समुदाय के श्रीराम मौर्य, बुधसिंह मौर्य, लैबान, कामेश्वर आदि लगभग एक दर्जन बच्चे कारसेवकों के दल में शामिल होकर अयोध्या पहुंचे थे.
इन्हें यह भी नहीं पता था कि कारसेवक कौन हैं? किसलिए अयोध्या जा रहे हैं? अयोध्या भगवान श्रीराम की नगरी है बस इतना ही इन्हें पता था. इन्होंने अपनी आंखों के सामने कारसेवकों विवादित ढांचा गिराते हुए देखा था. आज इनकी आयु 45 साल से 50 साल के बीच है.
श्रीराम मौर्य, बुधसिंह मौर्य की बड़ी इच्छा है कि ये भी श्रीरामलला को नवनिर्मित भव्य श्रीराम मंदिर में विराजते हुए दर्शन करें. नईदुनिया से चर्चा में श्रीराम ने कहा कि आज उन लोगों को बहुत खुशी है कि भव्य राममंदिर का निर्माण पूरा होने जा रहा है. पाई-पाई जोड़कर आज नहीं तो कल अयोध्या जरूर जाऊंगा.
बकावंड में फैंसी सामान की दुकान चलाने वाले बुधसिंह मौर्य 31 साल पुराने दिनों को याद करते हुए जोश से भर जाते हैं. उन्होंने बताया कि अयोध्या पहुंचने पर वहां कारसेवकों की बड़ी भीड़ थी. हम सब कम उम्र थे लेकिन मन में भय नाम की चीज नहीं थी.
बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद उनके दल में से भी कुछ लोग वापसी में वहां की ईंट लेकर आए थे. वापसी में जगह-जगह धरपकड़ चल रही थी इसलिए हमें घर लौटने में 7 से 8 दिन का अधिक समय लग गया. एक दो साथी तो भटक गए थे, जो कई दिनों बाद लौटे. जीवन में एक बार जरूर भगवान रामलला के दर्शनार्थ अयोध्या जाएंगे.