छत्तीसगढ़ के बस्तर में अयोध्या की तरह राम मंदिर का निर्माण होगा. इसके लिए आदिवासी समाज के सदस्य राजा राम तोडेम ने अपनी डेढ एकड़ जमीन दान में दी है. उनका कहना है कि बस्तर में धर्मांतरण को रोकना है और आदिवासियों को आस्था से जोड़े रखना है.
रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल का बहुत सारा समय दंडकारण्य में बिताया है. यही इलाका अब दक्षिण बस्तर के नाम से जाना जाता है. यहां की जीवनदायिनी कही जाने वाली इंद्रावती नदी के किनारे बसे घाटलोहंगा गांव में ही भगवान राम का मंदिर बनेगा.
संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से घाटलोहंगा गांव की दूरी करीब 10 किमी है. राजा राम तोडेम ने साल 2003 में यहां करीब 1 एकड़ 38 डिसमिल जमीन खरीदी थी. उन्होंने उसी समय मन बनाया था कि यहां भगवान श्री राम का मंदिर बनाया जाएगा. हालांकि, पैसों की कमी की वजह से काम शुरू नहीं हो पाया था.
साल 2007 में जमीन के एक हिस्से में हनुमान जी का मंदिर बनाया गया. उन्होंने बताया कि, इस इलाके में हनुमान जी का यह पहला मंदिर है. अब 2023 में राम मंदिर बनाने की नींव रखी गई है. राम मंदिर निर्माण कार्य से पहले हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जाएगा.
मंदिर में उकेरी जाएंगी राम से जुड़ी कहानियां
- रायपुर-जगदलपुर नेशनल हाईवे 30 से करीब 100 मीटर की दूरी पर मंदिर बनेगा.
- मंदिर का निर्माण कार्य करीब 3000 वर्ग फीट में किया जाना है.
- अयोध्या में बने भगवान श्री राम के मंदिर का हूबहू स्ट्रक्चर बनाने की प्लानिंग है.
- मंदिर में भगवान राम के वनवास काल के दौरान बस्तर से जुड़ी कहानियों को चित्रों और मूर्तियों के रूप में उकेरा जाएगा.
- हनुमान मंदिर के नाम से बना ट्रस्ट होगा डेवलप.
राजा राम तोडेम ने बताया कि, फिलहाल, हनुमान मंदिर के नाम से ट्रस्ट बना हुआ है, जिसे और डेवलप किया जाएगा. मंदिर बनाने के लिए करोड़ों रुपए लगेंगे. जो भी भक्त सहयोग करना चाहते हैं, वे इसी ट्रस्ट में दान कर सकते हैं. राजा राम ने कहा कि, बिना जन सहयोग से भव्य रूप से निर्माण काम करवाना संभव नहीं है.
बस्तर में पिछले कई सालों से लगातार धर्मांतरण हो रहे हैं. जिस गांव में मंदिर बनाया जाना है, उसके नजदीकी इलाकों में धर्मांतरण हुआ है. कई आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपना लिया है. साल 2023 में धर्मांतरण के मामले पर सबसे ज्यादा बवाल हुआ है. अब राम मंदिर बनाने से लोगों को आस्था से जोड़ा जाएगा.
घाटलोहंगा गांव के रहने वाले ग्रामीण तुलसीराम ने कहा कि, मंदिर बनाने के लिए हम पूरा सहयोग देंगे. हम अयोध्या नहीं जा पाएंगे तो यहां अयोध्या की तरह बनने वाले मंदिर में दर्शन कर लेंगे. मंदिर बनने से लोग अपने मूल धर्म से भटकेंगे नहीं. धर्मांतरण रुकेगा. यदि मंदिर बनता है तो हमारी आस्था जुड़ी रहेगी.
14 साल के वनवास काल के दौरान प्रभु श्री राम ने अपना ज्यादा वक्त दंडकारण्य में बिताया था, जिनके साक्ष्य भी आज देखने को मिलते हैं. दंडकारण्य जिसे वर्तमान में दक्षिण बस्तर कहा जाता है, प्रभु श्री राम का यहां के जल-जंगल-जमीन से एक खास नाता रहा है.
जिन-जिन जगहों पर श्री राम गए थे, वहां आज भी उनके प्रतीक चिन्ह देखने को मिलते हैं. बस्तर में प्रभु श्री राम के वनवास काल से कई कहानियां जुड़ी हुई है. यही वजह है कि जिन-जिन जगहों से श्री राम गुजरे थे वहां अब सरकार राम वन गमन पथ का निर्माण करवा रही है.
बस्तर के कुछ इतिहासकारों के अनुसार, वनवास काल के दौरान श्री राम सबसे पहले नारायणपुर के इलाके में पहुंचे थे. यहां श्री राम ने अपना लंबा समय बिताया था. हालांकि वे यहां किन-किन स्थानों पर रुके थे, इसकी जानकारी फिलहाल किसी के पास नहीं है. इतिहासकार इतना जरूर बताते हैं कि श्री राम ने नारायणपुर के जंगलों से होते हुए ही दंडकारण्य में प्रवेश किया था.
भगवान राम दंडकारण्य में चित्रकोट फिर कोटमसर पहुंचे. जंगलों के बीच बसे कोटमसर गांव के ग्रामीणों की प्रभु श्रीराम के प्रति एक बड़ी आस्था है. यहां पहाड़ों और घने जंगल के बीच स्थित दंडक गुफा है, जहां भगवान राम रुके थे. इसके बाद आगे का सफर तय किया.
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि किवदंतियों में भगवान राम कुछ दिनों के बाद यहां से अबूझमाड़ के जंगल में गए थे. वर्तमान में दंडक गुफा तक जाने के लिए प्रशासन ने सीढ़ियां बनाई है. साथ ही इलाके को पर्यटन स्थल के रूप में डेवलप किया गया है.
मान्यता है कि भगवान श्री राम दंडक गुफा के बाद अबूझमाड़ से होते हुए बाणासुर की नगरी कहे जाने वाले बारसूर आए थे. यहां से रामाराम की तरफ जाने के दौरान पुरनतराई गांव के पास एक चट्टान पर विश्राम किया था. इस जगह को आज राम-सीता का मंदिर स्थापित किया गया है.
इस मंदिर से ग्रामीणों की एक बड़ी आस्था भी जुड़ी हुई है. जिस जगह प्रभु ने विश्राम किया था, वहां करीब 1 किमी के दायरे में बड़ी संख्या में बंदर मिलते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि, उनके दादा-परदादाओं के समय से यहां बंदर देखे जा रहे हैं. ग्रामीणों का मानना है कि यह प्रभु श्री राम की वानर सेना है.
बारसूर से प्रभु राम सुकमा की तरफ बढ़े थे. यहां उन्होंने भू-देवी की आराधना की थी, जो आज चिटमिट्टीन माता के नाम से प्रसिद्ध है. सुकमा जिला मुख्यालय से 8 किमी दूर रामाराम गांव है, यहां प्रभु राम का मंदिर है. कुछ इतिहासकार बताते हैं कि, प्रभु राम के नाम पर ही इस गांव का नाम भी रामाराम पड़ा है.
जानकार बताते हैं कि, भू-देवी की आराधना करने के बाद प्रभु कोंटा और इंजरम गए थे. इस गांव में श्री राम कई दिनों तक रहे. यहां महादेव की उन्होंने आराधना की थी, जिनके साक्ष्य आज भी मिलते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि, इंजरम का ऐतिहासिक नाम इंजेराम है.
‘इंजे’ क्षेत्रीय बोली गोंडी का शब्द है, जिसका हिंदी अनुवाद ‘यहां’ होता है. इसी गोंडी बोली से इंजेराम नाम बना है. जिसका मतलब है कि यहां राम थे. वर्तमान में इस गांव को इंजरम कहा जाता है. यह छत्तीसगढ़ का सबसे अंतिम छोर है. प्रभु श्री राम यहां से फिर तेलंगाना के भद्राचलम गए थे.