CAA (नागरिकता संशोधन कानून) लागू होने से छत्तीसगढ़ के करीब 63 हजार शरणार्थियों को फायदा होगा. ये शरणार्थी 50-60 साल से यहां बसे हैं, लेकिन इनके पास भारत की नागरिकता नहीं है. सभी शरणार्थी रेसिडेंट परमिट या वीजा लेकर यहां रह रहे हैं. कई लोगों के पास ये दस्तावेज भी नहीं है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में दिसंबर 2014 के पहले आए 62 हजार 890 लोग बगैर नागरिकता के रह रहे हैं. सबसे ज्यादा पाकिस्तानी और बांग्लादेशी शरणार्थी हैं. इनमें सबसे ज्यादा पखांजूर के 133 गांवों में रहते हैं. अकेले रायपुर में 1625 से ज्यादा पाकिस्तानी शरणार्थी हैं, जिनके पास रेसिडेंट परमिट और वीजा है.
1100 से ज्यादा बांग्लादेशी शरणार्थी हैं, जिनके पास दस्तावेज ही नहीं है, लेकिन अब ये रायपुर के मतदाता भी हो गए हैं.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 31 अक्टूबर 1979 तक बस्तर इलाके में 18,458 शरणार्थियों को बसाया गया. इन शरणार्थियों के लिए सिंचाई, पेयजल आपूर्ति, जमीन सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा, सड़क निर्माण जैसे विकास के कई काम किए गए. इसी तरह कांकेर के पंखाजूर में भी बांग्लादेशी शरणार्थियों को बसाया गया था.
इसी तरह रायपुर के माना में 500 से ज्यादा परिवार बराए गए थे, जिनकी संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है.
पुलिस के मुताबिक रायपुर में 311 से ज्यादा विदेशी नागरिक हैं, जो वीजा पर आए हैं. ज्यादातर एजुकेशन तो कुछ टूरिस्ट वीजा पर आए हैं. उन्हें एक साल के लिए वीजा दिया जाता है. हर साल वीजा की अवधि बढ़ाना पड़ता है, जबकि 1625 लोग रेसिडेंट परमिट पर रह रहे हैं. 2016 में 500 परिवार वीजा पर आए थे, जो परमिट लेकर रहने लगे हैं. अब नागरिकता लेना चाहते हैं.
पंखाजूर के 295 में से 133 गांवों में बांग्लादेशी शरणार्थी अब भी रहते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक कांकेर की कुल 1.71 लाख की आबादी में से 1 लाख लोग बांग्ला बोलते हैं. वहीं, पंखाजूर शहर की कुल 10,201 लोगों की आबादी में करीब 95 फीसदी हिस्सा बांग्लादेश से आए लोगों का है.
अधिकारियों ने बताया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से डेढ़ महीने का वीजा लेकर लोग आते थे. इसके बाद और रहने के लिए वीजा के लिए आवेदन करते थे. केंद्रीय गृह विभाग दस्तावेजों की जांच और पुलिस वैरिफिकेशन के बाद वीजा बढ़ाता था. बाद में 2 साल का वीजा जारी होने लगा. लगातार 7 साल तक रहने के बाद नागरिकता दी जाती है.
2016 में केंद्र सरकार ने कुछ जिलों के कलेक्टर और गृह सचिव को शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का अधिकार दिया था. छत्तीसगढ़ में सिर्फ रायपुर कलेक्टर और गृह सचिव को ये अधिकार था. 2021 में दुर्ग और बलौदाबाजार कलेक्टर को भी अपने जिले के शरणार्थियों को नागरिकता का अधिकार दिया गया.
बाकी जिलों के लिए लोगों को गृह सचिव को आवेदन देना होता है. पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के लोगों को नागरिकता देने में डरते थे. इस वजह से सालों बाद भी लोगों को सिटिजनशिप नहीं मिली है.
छत्तीसगढ़ के डिप्टी CM और गृह मंत्री विजय शर्मा ने कहा कि देश में CAA एक ऐतिहासिक फैसला है. इससे छत्तीगसढ़ में रहने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भी भारत की नागरिकता मिल जाएगी. केंद्र की गाइडलाइन के अनुसार प्रदेश भी प्रक्रिया शुरू करेंगे.
सरकार ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन बनाया है. आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था. उन्हें ये साबित करना होगा कि वे पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश के निवासी हैं. इसके लिए वहां के पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, मार्कशीट या वहां की सरकार से जारी पहचान का कोई प्रमाण पत्र पेश करना होगा.
नागरिकता के आवेदनों पर एक समिति फैसला लेगी इस समित में जनगणना निदेशक, आईबी, फॉरेन रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस, पोस्ट ऑफिस और राज्य सूचना अधिकारी शामिल होंगे. सबसे पहले आवेदन जिला कमेटी के पास जाएगा. फिर उसे एंपावर्ड कमेटी को भेजा जाएगा.
जनवरी 2019 में संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 31 दिसंबर 2014 तक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31,313 गैर-मुस्लिमों ने भारत में शरण ली है. यानी 31,313 लोग इस कानून के जरिए नागरिकता हासिल करने के योग्य होंगे.