छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में बने हर्बल गुलाल की डिमांड अब उत्तर प्रदेश के मथुरा, ब्रज के साथ ही दिल्ली और पश्चिम बंगाल में भी होने लगी है. गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रूलर टेक्नोलॉजी के स्टूडेंट्स देवी-देवताओं पर चढ़े वेस्ट फूलों और पालक जैसी पौष्टिक सब्जी से गुलाल बना रहे हैं, जो त्वचा के लिए सेफ और फायदेमंद है.
इस बार होली में यूनिवर्सिटी के स्टूडेंड्स ने 5 क्विंटल हर्बल गुलाल बनाकर बेचने की तैयारी की है. इसके लिए बेस्ट पैकेजिंग और मार्केटिंग का काम भी स्टूडेंट्स कर रहे हैं.
दरअसल, गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रूलर टेक्नोलॉजी में स्वावलंबी छत्तीसगढ़ योजना के तहत स्टूडेंट्स प्राकृतिक चीजों से गुलाल बना रहे हैं. डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर दिलीप कुमार ने बताया कि यहां छात्र-छात्राओं को विषय की पढ़ाई के अलावा उनकी रुचि के अनुसार करियर ओरिएंटेड ट्रेनिंग भी दी जाती है.
इसमें उनके नॉलेज के साथ कौशल विकास में भागीदारी, स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण, जरूरतमंद स्टूडेंट्स को आय के साधन मुहैया कराने का काम भी किया जा रहा है. इसी कड़ी में स्टूडेंट्स को प्राकृतिक तत्वों से गुलाल बनाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है.
असिस्टेंट प्रोफेसर दिलीप कुमार ने बताया कि छात्र-छात्राओं को त्योहारों के लिए सीजनल प्रोडक्ट तैयार करने के तरीके बताए गए हैं, जिसमें होली के लिए रंग-बिरंगे गुलाल बनाने के तरीके सिखाए गए. पिछले साल स्टूडेंट्स ने 2 क्विंटल गुलाल तैयार किया था.
इस बार डिमांड बढ़ने पर 5 क्विंटल गुलाल बनाने का टारगेट रखा गया है. रंगों के लिए चुकंदर से गुलाबी और लाल रंग, पीले रंग के लिए हल्दी और गेंदे के फूल, हरे रंग के लिए पालक, पलाश के फूल से गुलाबी रंग तैयार किया गया है. फूलों से बने गुलाल में सुगंध बनी रहे, इसके लिए लेमन ग्रास और गुलाब जल का भी इस्तेमाल किया गया है.
यूनिवर्सिटी के छात्र रोशन कुमार और केदार पटेल ने बताया कि आमतौर पर होली में केमिकलयुक्त कलर्स मिलते हैं, लेकिन हमने हर्बल रंग बनाने का बीड़ा उठाया है. केमिकल वाले रंगों से आंखों में एलर्जी, अंधापन, त्वचा में जलन, त्वचा के कैंसर और यहां तक कि गुर्दे फेल होने की आशंका बनी रहती है.
वहीं, युवाओं के बीच केमिकल युक्त मेटल कलर पेस्ट चलन में होता है, जिसके हानिकारक असर को देखते हुए, इसके प्रयोग में कमी लाने की कोशिश की जा रही है. हर्बल गुलाल में केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यह पूरी तरह से प्राकृतिक चीजों से बनता है, इसलिए इससे किसी भी तरह के नुकसान की शंका नहीं रहती.
असिस्टेंट प्रोफेसर दिलीप कुमार ने बताया कि हर्बल गुलाल बनाने के लिए जरूरी कच्चा माल आसानी से उपलब्ध है. पिछले साल गुलाल की बिक्री से स्टूडेंट्स काफी उत्साहित हैं. यही वजह है कि उन्होंने बेहतर पैकेजिंग की और खुद इसकी मार्केटिंग भी कर रहे हैं. यही वजह है कि इस बार 5 क्विंटल गुलाल तैयार किया जा रहा है.
असिस्टेंट प्रोफेसर दिलीप कुमार ने बताया कि डिपार्टमेंट में बने हर्बल गुलाल की बिक्री कर स्टूडेंट्स अपनी फीस के साथ ही जेब खर्च भी निकाल लेते हैं. इसके साथ ही ऐसे जरूरतमंद स्टूडेंट्स जो अपनी फीस जमा नहीं कर पाते, उन्हें भी मुनाफे के पैसे से मदद की जाती है.
डिपार्टमेंट में समय-समय पर प्रशिक्षण का आयोजन भी किया जाता है. इसमें प्रदेश के अलग-अलग जिलों के किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है. और उन्हें हर्बल प्रोडक्ट तैयार करने के साथ ही मशरूम की खेती और उसके उत्पाद की जानकारी दी जाती है.
किसानों के लिए यह बहुत ही आसान काम है, क्योंकि उन्हें उत्पादन के लिए कच्चा माल आसानी से मिल जाता है और इसमें ज्यादा इन्वेस्ट करने की भी जरूरत नहीं होती.