छत्तीसगढ़ की राजधानी में गंभीर मरीजों को ले जाने वाली एंबुलेंस के लिए ऑटोमेटिक ग्रीन कॉरिडोर सिस्टम बनाया जा रहा है. इसके लिए एंबुलेंस में GPS सिस्टम लगाकर उसे चौराहों पर लगे सिग्नल और ITMS के कैमरे से कनेक्ट किया जाएगा. इसके बाद एंबुलेंस जैसे ही चौराहे से 100 मीटर दूर रहेगी. GPS सिस्टम एक्टिव होगा और जिधर से एंबुलेंस आ रही होगी, उधर सिग्नल ग्रीन हो जाएगा. एंबुलेंस के गुजरने तक सिग्नल ग्रीन रहेगा. इस सिस्टम को लांच करने के लिए ट्रायल कर लिया गया है.
रायपुर के सभी 51 चौराहों पर यही सिस्टम रहेगा. चौराहे पर सिग्नल ग्रीन मिलने से मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाया जा सकेगा. एंबुलेंस जाम में नहीं फंसेगी. नए साल की शुरुआत में ही इस सिस्टम को लांच कर दिया जाएगा. सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में भी इस प्रस्ताव को अनुमति मिल गई है. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि राजधानी में लगातार शिकायतें आ रही हैं कि एंबुलेंस जाम में फंस रही है. सिग्नल पर रास्ता नहीं मिलता है. इस वजह से मरीज को अस्पताल ले जाने में देरी हो रही है. शहर में ट्रैफिक का दबाव ज्यादा है. इसलिए नया सिस्टम बनाया जा रहा है.
शहर के 51 चौक-चौराहों पर ITMS के तहत हाईटेक सिग्नल लगा है. सभी में को एंबुलेंस में लगे GPS से कनेक्ट किया जाएगा. इससे एंबुलेंस जब जिस चौराहे पर पहुंचेगी सिग्नल ग्रीन हो जाएगा. ITMS के कंट्रोल रूम में इसे स्क्रीन पर देख सकेंगे. वहां से भी संबंधित इलाके के ट्रैफिक अफसरों को अलर्ट किया आएगा. DSP ट्रैफिक गुरजीत सिंह ने बताया कि एंबुलेंस को शहर के सभी सिग्नल पर ग्रीन लाइट मिलेगी. इसका दोबार ट्रायल किया गया. दोनों बार सफलता मिली है. अगले माह से इसे चालू कर दिया जाएगा.
पहले चरण में शहर के सभी सरकारी अस्पताल में चल रही एंबुलेंस में यह सिस्टम लगाया जाएगा. अगले चरण में निजी एंबुलेंस में भी सिस्टम लगाया जाएगा. ड्राइवर और संचालक को एंबुलेंस में लगा GPS सिस्टम ऑपरेट करने की ट्रेनिंग दी जाएगी. जब एंबुलेंस गंभीर मरीज लेकर जाएगी तभी GPS को चालू करना होगा. मरीज नहीं होने पर उसे बंद करना होगा.
DSP गुरजीत सिंह ने बताया कि एंबुलेंस के लिए सिग्नल को ग्रीन करने 2 तरह का सिस्टम बनाया गया है. एक सिस्टम में डिवाइस GPS से चलता है और दूसरे में सायरन की आवाज से. इसमें एड्रीनो सिस्टम में एंबुलेंस के सायरन की फ्रिक्वेंसी फीड की जाती है. इस सिस्टम को ट्रैफिक सिग्नल के 50 से 100 मीटर पहले लगाया जाता है. इसके अलावा ट्रैफिक सिग्नल पर भी एक डिवाइस लगाया जाता है. इसकी रेंज में आते ही या सायरन बजते ही सिग्नल ग्रीन होता है. एंबुलेंस की आवाज को कैच करने के बाद सिस्टम से ट्रैफिक सिग्नल को कमांड जाता और एंबुलेंस जाने वाली दिशा का सिग्नल ग्रीन हो जाता. पूरा सिस्टम सोलर एनर्जी बेस्ड रहता है. दूसरा सिस्टम GPS से चलता है. (यह सिस्टम लखनऊ और अहमदाबाद में भी)
एनआईटी, रायपुर के प्रोफेसर डॉ. सुधाकर पांडेय ने बताया कि डेटा ट्रैफिक के लिए इस तरह के सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम का उपयोग किया जाता है, इसमें हादसा या गाड़ी के फंसने का खतरा नहीं रहता है. क्योंकि शहर में ज्यादातर सिग्नल की टाइमिंग 30 से लेकर 65 सेकेंड तक है. 50 से 100 मीटर की रेंज में एंबुलेंस के आने से सिग्नल ऑटोमेटिक प्रोग्रामिंग करने लगता है. जहां सिग्नल ग्रीन है वह रेड हो जाता है. एंबुलेंस के लिए सिग्नल ग्रीन हो जाता है. इससे गाड़ियां आसानी से निकल जाती हैं. कहीं फंसती नहीं हैं.
मयंक चतुर्वेदी, आयुक्त नगर निगम, रायपुर ने बताया कि स्मार्ट सिटी के तहत एंबुलेंस और सिग्नल पर हाईटेक सिस्टम लगाया जाएगा. इससे चौक पर एंबुलेंस पहुंचते ही सिग्नल ग्रीन हो जाएगा. इससे एंबुलेंस के लिए ग्रीन कॉरिडोर बन जाएगा.