जिस तरह से छत्तीसगढ़ की देसी गाय का नाम पेटेंट करवाकर कोसली रखा गया है, उसी प्रकार अब प्रदेश की देशी नस्ल की बकरी को भी पेटेंट करने की तैयारी चल रही है. प्रदेश के गांवों में पाई जानी वाली इन देसी बकरियों के नस्ल का नाम अंजोरी रखा जाएगा. पेटेंट कराने की प्रक्रिया कामधेनु विश्वविद्यालय ने पूरी कर ली है.
जल्द ही नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसर्च (NBAGR) के विशेषज्ञ विश्वविद्यालय आएंगे. जांच पड़ताल पूरी करने के बाद छत्तीसगढ़ के इस नए नस्ल को रजिस्टर करेंगे. विश्वविद्यालय के जेनेटिक विभाग के विशेषज्ञ डॉ. के मुखर्जी ने बताया कि छत्तीसगढ़ की देसी बकरियों में कई ऐसी खासियत है, जो अन्य बकरियों में नहीं है. इसलिए पहले इस प्रजाति की बकरियों पर रिसर्च किया गया. इसके बाद इसकी खासियत को पहचानने के बाद ही इसे पेटेंट कराने की पहल की गई है.
इस प्रजाति की बकरी लगभग 8 माह की उम्र में प्रजनन योग्य हो जाती है. डेढ़ साल में ये बकरी दो बार बच्चे देती है और हर 5 बार में तीन बार यह एक साथ तीन-तीन बच्चे देती है. यह भी इसकी सबसे बड़ी खासियत है. जमुनापारी एक बच्चा देती है, जबकि 50% बकरियां जुड़वां बच्चे देती हैं. इन बकरियों के दूध में मिठास होने के साथ गर्मी सहने की अधिक क्षमता होती है, जो कि अन्य नस्लों में नहीं पाई जाती है.
अंजोरी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के दुर्ग, राजनांदगांव, रायपुर, कवर्धा, बेमेतरा, बालोद, बिलासपुर, धमतरी आदि जगहों में पाए जाते हैं. इनका रंग भूरा काला और आकार मध्यम होता है. इनका औसत वजन 25 से 30 किलो तक होता है. यह कीचड़, खेत, मैदान सभी जगहों पर आसानी से चल सकती है. इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है. इस वजह से ये हर वातावरण में रह सकते हैं. अधिकांश पशुपालक इसे पालते हैं और इसे बेच कर आय कमाते है. इसका मीट भी काफी स्वादिष्ट होता है. इसलिए इसकी डिमांड होती है.
कामधेनु विश्वविद्यालय अंजोरा दुर्ग के जेनेटिक विभाग के विशेषज्ञ के मुखर्जी ने कहा, स्थानीय बकरियों का पेटेंट होने के बाद इन बकरियों के वजन, दूध की क्षमता कैसे बढ़ाई जाए, इस पर रिसर्च किया जाएगा. इनका वजन व दूध देने की क्षमता बढ़ेगी तो किसान इससे अधिक आय कमा सकेंगे.