छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा आबादी साहू समाज के लोगों की है. इनकी संख्या 30 लाख 5 हजार 661 है. इसका खुलासा भूपेश कार्यकाल में बनवाई गई क्वांटिफायबल डेटा लीक से हुआ है जो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है. जिसके मुताबिक 1 करोड़ 25 लाख 7 हजार 169 हेडकाउंट में सबसे बड़ा OBC वर्ग है. यहां 95 जातियों के सदस्य OBC और आर्थिक रूप से कमजोर श्रेणियों से ताल्लुक रखते हैं.
प्रदेश में दूसरी बड़ी जाति यादवों की है. इनकी संख्या 22 लाख 67 हजार 500 है. तीसरे नंबर पर निषाद समाज के लोग हैं. इनका हेडकाउंट 11 लाख 91 हजार 818 है. चौथे नंबर पर कुशवाहा समाज के सदस्य है. इनकी संख्या 8 लाख 98 हजार 628 है. वहीं पांचवे नंबर पर कुर्मी जाति है, इनकी संख्या प्रदेश में 8 लाख 37 हजार 225 है.
कांग्रेस सरकार के दौरान तत्कालीन CM भूपेश बघेल के निर्देश पर क्वांटिफायबल डाटा आयोग का गठन हुआ था. सामान्य प्रशासन विभाग के द्वारा 11 सितंबर 2019 को इस संबंध में निर्देश जारी किया गया था. राज्य सरकार ने बिलासपुर जिला एवं सेशन जज के पद से सेवानिवृत्त छविलाल पटेल को आयोग का अध्यक्ष बनाया था. इसका कार्यालय सागौन परिसर बंगला के पास था.
आयोग के अध्यक्ष ने रिपोर्ट 21 नवंबर 2022 को भूपेश बघेल सरकार को सौंपा था. रिपोर्ट का आंकड़ा सार्वजनिक नहीं किया गया. कांग्रेस सरकार ने डेढ़ साल तक इसे गोपनीय रखा. बीते दिनों विधानसभा में क्वांटिफायबल डाटा आयोग के आंकड़ों पर चर्चा हुई, तो CM विष्णुदेव साय ने इस आंकड़े को सार्वजनिक करने की बात कही थी.
सरकार इस आंकड़े को सार्वजनिक करती, इससे पहले ही सर्वे का डाटा सोशल मीडिया में वायरल हो गया. सोशल मीडिया में वायरल आंकड़ा सही है या नहीं, इस बात की जानकारी लेने के लिए मीडिया ने आयोग के अध्यक्ष से चर्चा करने की कोशिश की. लेकिन उनकी तरफ से मामले में किसी भी तरह की जानकारी नहीं दी गई.
MLA अजय चंद्राकर ने क्वांटिफायबल डाटा आयोग के संबंध में बीते दिनों विधानसभा में सवाल किया था. MLA चंद्राकर के सवाल का जवाब देते हुए CM साय ने बताया था, कि क्वांटिफायबल डाटा आयोग का गठन सामान्य प्रशासन विभाग ने 11 सितंबर 2019 को किया था.
इसका उद्देश्य राज्य की जनसंख्या में अन्य पिछड़े वर्गों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का सर्वेक्षण करके क्वांटिफायबल डाटा एकत्रित किया जाना था.
आयोग का कार्यकाल 6 महीने में प्रतिवेदन शासन को सौंपकर गठन किया गया था. लेकिन प्रतिवेदन जरूरी होने के कारण आयोग का कार्यकाल 10 बार बढ़ाया गया, आखिरी बार 2 महीने की अवधि के लिए 31 दिसंबर 2022 तक के लिये बढ़ाया गया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट और प्रतिवेदन 21 नवंबर 2022 को राज्य सरकार को सौंपा था.
CM साय ने विधानसभा में बताया, कि प्रतिवेदन किसी भी संस्थाओं को नहीं दी गई है. क्वांटिफायबल डाटा आयोग के चेयरमैन सेवानिवृत्त जिला और सेशन जज थे. आयोग में सदस्य नियुक्त नहीं किए गए थे.
आयोग के चेयरमैन को मानदेय और समान पद के न्यायिक अधिकारियों को उपलब्ध सुविधाएं दी गई थी. आयोग द्वारा सर्वे रिपोर्ट तैयार करने में 1 करोड़ 7 लाख 6 हजार 856 रुपए व्यय की गई है. ऐप के माध्यम से सर्वे किया गया था.
कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय ठाकुर के मुताबिक डेटा सार्वजनिक करने से पहले लीक होना साय सरकार की विश्वसनीयत पर सवाल उठाता है. भूपेश कार्यकाल में इसका सर्वे कराकर सुरक्षित रखा गया था. साय सरकार ने डेटा जल्द सार्वजनिक करने की बात कही थी. इसकी जांच होनी चाहिए. वहीं भाजपा प्रवक्ता केदार गुप्ता के मुताबिक भूपेश बघेल आरक्षण विरोधी थे, इसलिए सोच समझकर रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया था.