संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सिम्स में सर्दी-खांसी और बुखार जैसी दवाएं तो आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन शुगर, हार्ट, एंटी बायोटिक दवाओं के अलावा नॉर्मल स्लाइन के लिए मरीज के परिजन को भटकना पड़ रहा है.
आने वाले दिनों में जो दवाएं उपलब्ध हैं, उसमें भी परेशानी हो सकती है, क्योंकि 70 लाख रुपए का लोकल पर्चेस हो चुका है और भुगतान नहीं किया गया है. यह सब CGMSC से दवाओं की सप्लाई नहीं होने के कारण हो रहा है. जिला अस्पताल में भी ऐसी स्थिति है. जिला अस्पताल में 324 दवाइयों की मांग की जाती है, लेकिन सप्लाई 150 की ही हो रही है.
CGMSC सरकारी अस्पतालों में जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध कराने के मामले में नाकाम साबित हो रहा है. सिम्स और जिला अस्पताल में कई अहम दवाएं उपलब्ध नहीं है. इससे मरीज व उनके परिजन को दिक्कत हो रही है. कहीं हार्ट तो कहीं एनेस्थिसिया के लिए दवा नहीं है.
वित्तीय वर्ष 2023-24 में सिम्स अस्पताल ने CGMSC को 528 प्रकार की दवाओं का ऑर्डर दिया था. अब तक महज 263 दवाएं ही मिली हैं. मांग के अनुसार आधे से भी कम दवा सिम्स में सप्लाई हो पाई है. फिलहाल डायरिया और एंटीबायोटिक सहित कई अहम दवाएं कम मात्रा में मौजूद हैं. इससे मरीजों को जरूरी दवाएं नहीं मिल पा रही है. कई गंभीर मामलों में ऑपरेशन भी नहीं हो रहा.
सिम्स प्रबंधन इस मामले में खुद को लाचार मान रहा है. उनके मुताबिक उन्होंने CGMSC को कई बार मांग पत्रों के अनुरूप दवा भेजने की बात लिखी है. उन्होंने बताया है कि उनके यहां इसके बाद CGMSC के जिम्मेदार अधिकारी इसकी ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है. इससे सिम्स के साथ-साथ जिला अस्पताल, सिम्स समेत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऐसी दिक्कत आम बात हो गई है. मरीजों को परेशानी उठानी पड़ रही है. इसी स्थिति को देखकर मरीज और उनके परिजन निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं.
कॉर्पोरेशन ने दवा की जांच के लिए हैदराबाद, मुंबई, बेंगलुरू व दिल्ली समेत सात लेबोरेटरी से अनुबंध किया है. जांच में हर साल 40 लाख रुपए से ज्यादा खर्च होता है. अस्पतालों की मांग पर जब दवा कॉर्पोरेशन के 9 गोदामों में पहुंचता है, तब बैच के अनुसार जांच के लिए लैब भेजते हैं. 15-20 दिन में रिपोर्ट आती है. अधिकारियों का दावा है कि बिना जांच रिपोर्ट आए दवा की सप्लाई अस्पतालों में नहीं की जाती. तब तक दवा गोदामों में पड़ी रहती है.
सिम्स ने CGMSC से दवा नहीं मिलने के बाद स्थानीय खरीदी के माध्यम से टेंडर निकालकर दवा की खरीदी की जाती है. वर्तमान में सिम्स के सामने जैन मेडिकल स्टोर को स्थानीय खरीदी का टेंडर मिला हुआ है. CGMSC ने दवा सप्लाई नहीं की तो तकरीबन 70 लाख रुपए का दवा स्थानीय खरीदी के माध्यम से उधार में लिया जा चुका है. संबंधित मेडिकल स्टोर का भुगतान नहीं होने से अब वहां से भी दवा मिलने में भी समस्या हो रही है.
अस्पताल में समय पर दवा और मशीन नहीं पहुंच पाने के पीछे कॉर्पोरेशन के अधिकारियों का खेल है. दवा के साथ मशीन खरीदी के लिए सालाना 150 करोड़ रुपए का बजट है. अस्पतालों में समय पर दवा सप्लाई नहीं होने से मरीजों को काफी परेशानी होती है. अस्पताल की तरफ से CGMSC को दवा सप्लाई के लिए कई पत्र लिख चुके हैं. अभी सिम्स और और जिला अस्पताल में लंबे समय से नॉर्मल स्लाइन नहीं है. लोकल पर्चेस से दवाएं ले रहे हैं.
अधीक्षक सिम्स के डॉ. एसके नायक ने बताया कि दवा के लिए जो 100 प्रतिशत बजट आता है, उसमें केवल 10 प्रतिशत राशि ही हमें मिलती है. 90 प्रतिशत CGMSC को जाती है. ऐसे में आधे से अधिक दवाएं सिम्स को नहीं मिल पा रही हैं. जिन दवाओं की NOC मिलती है उसे स्थानीय खरीदी से खरीद रहे हैं, ताकि मरीजों को कोई परेशानी न हो.