छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या 19 से घटकर 17 हो गई है. विश्व बाघ दिवस पर शनिवार को नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की रिपोर्ट 2022 में यह जानकारी सामने आई है. बाघों की संख्या घटने के बाद प्रदेश के वन विभाग ने अब मिशन मोड पर काम करने की बात कही है. छत्तीसगढ़ में बाघों का कुनबा बढ़ाने के लिए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से बाघ लाए जाएंगे.
गौरतलब है कि वर्ष 2014 में प्रदेश में 46 बाघ हुआ करते थे, मगर 2018 की गणना में बाघों की संख्या घटकर सिर्फ 19 रह गई थी. इस बार अधिकारियों को उम्मीद थी कि बाघों की संख्या बढ़ेगी मगर निराशा ही हाथ लगी. बता दें कि NTCA हर चार वर्ष में बाघों की संख्या का सर्वेक्षण कर रिपोर्ट जारी करता है. पिछले वर्षों के आंकड़ों का देखें तो प्रदेश में बाघों की संख्या निरंतर कम हो रही है.
छत्तीसगढ़ में लगातार कम हो रही बाघों की संख्या
सर्वे रिपोर्ट वर्ष बाघ की संख्या
2006 – 26
2010 – 26
2014 – 46
2018 – 19
2022 – 17
(एनटीसीए की ओर से जारी पिछले वर्षों के आंकड़े)
पड़ोसी राज्यों में इतने हैं बाघ
राज्यों में बाघों की संख्या
मध्यप्रदेश – 785
महाराष्ट्र – 444
उत्तराखंड – 560
बिहार – 54
आंध्रपदेश – 63
उत्तर प्रदेश – 205
तेलंगाना – 21
ओडिशा – 20
टाइगर रिजर्व की हालत खराब:
राष्ट्रीय स्तर पर किए गए आकलन के अनुसार देशभर के 51 टाइगर रिजर्व की रैंकिंग में छत्तीसगढ़ के टाइगर रिजर्व अभी पीछे हैं. छत्तीसगढ़ में तीन टाइगर रिजर्व -अचानकमार, उदंती-सीतानदी और इंद्रावती हैं. ये रिजर्व कुल मिलाकर 5,500 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं. राष्ट्रीय रैंकिंग के अनुसार अचानकमार टाइगर रिजर्व देश में 39वें स्थान पर है. उदंती सीतानदी 48वें और इंद्रावती 50वें नंबर पर है. आंकलन में टाइगर रिजर्व को एक्सीलेंट, वेरी गुड, गुड और फेयर श्रेणी में बांटा गया है. अचानकमार टाइगर रिजर्व तीसरी श्रेणी गुड में है. बाकी दोनों फेयर यानी अंतिम श्रेणी में हैं.
प्रदेश में बाघों के रहवास वाले जंगलों में वन विभाग का अमला सघन मॉनिटरिंग नहीं कर पाता है. जिन जगहों पर नक्सलियों का प्रभाव है वहां वन अमला अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से बचता है.
बाघों के रहवास के लिए जंगलों का विस्तार करने की जरूरत है. इसके लिए शासन और जनप्रतिनिधियों में दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है जिसका अपेक्षाकृत अभाव है.
बाघों के संरक्षण में हुआ खर्च
प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार के पिछले तीन वर्षों में ₹183 करोड़ खर्च किए गए थे, जबकि पिछली भाजपा सरकार के चार वर्षों के दौरान ₹229 करोड़ खर्च किए गए थे, इसके बावजूद बाघों की संख्या में कमी आई थी. यह राशि बाघों के संरक्षण, उनके लिए बेहतर सुविधाएं विकसित करने के लिए जंगलों में वृद्धि और शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ाने पर खर्च की गई थी. बाघों पर हर साल ₹60 करोड़ और एक माह में ₹5 करोड़ खर्च हो रहे हैं.