दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज 17 फरवरी की रात 2:35 बजे महासमाधि में लीन हो गए. इसके बाद से संतों का देशभर से छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरि तीर्थ पहुंचने का सिलसिला जारी है. अलग-अलग प्रांतों से जैन समाज के लोग भी आ रहे हैं.
वहीं श्री विद्यासागर जी महाराज के उत्तराधिकारी बनाए गए मुनि समय सागर महाराज रावल वाड़ी (मध्य प्रदेश) पहुंच गए हैं. वे 43 साधुओं के साथ पैदल यात्रा कर 22 फरवरी को बालाघाट से डोगरगढ़ पहुंचेंगे. उन्हें विधिवत रूप से आचार्य की गद्दी सौंपी जाएगी.
इसके बाद आगे का कार्यक्रम तय होगा. जैन धर्म में अस्थियों को जल में विसर्जित नहीं किया जाता. इसलिए आचार्य विद्यासागर जी की अस्थियों का कलश में संकलन कर उसे जमीन में गाड़ा जाएगा. जिस स्थान में अस्थि कलश गाड़ा जाएगा, वहां समाधि बनाई जाएगी.
अंतिम संस्कार स्थल पर अभी भी अग्नि जल रही है. यहां से श्री विद्यासागर महाराज के अनुयायी नारियल चढ़ा रहे हैं और भभूत लेकर घर जा रहे हैं. इससे पहले सोमवार 19 फरवरी को हुई विनयांजलि सभा में हस्तिनापुर के मठाधीश दिगंबर समाज के कीर्ति रविंद्र जैन पहुंचे. ये ज्ञानमती माता के भाई है.
इनके अलावा इंदौर, नागपुर, छत्तीसगढ़, भोपाल सहित देश के बड़े ट्रस्टों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे रहे हैं. जैन चंद्रगृह तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष किशोर कुमार जैन और प्रतिभा स्थली के अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जैन ने बताया कि देशभर से सभी संत पद यात्रा कर आ रहे हैं.
आचार्य श्री की इलाज सेवा में 9 लोग थे. इसमें 2 नाड़ी वैद्य भी थे. आचार्य श्री ने वैद्य की ओर देखकर पूछा कितना वक्त है तो उन्होंने बताया था कि नाड़ी बता रही कि अब उम्र ज्यादा नहीं है. यह बातचीत नाड़ी वैद्य और उनके बीच 6 फरवरी को हुई थी.
उसके बाद आचार्य श्री ने कुछ निर्णय लेते हुए उसी दिन साथ के मुनि राजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रवण मुनि योग सागर जी से चर्चा की और संघ संबंधित कार्यों से निवृत्ति ले ली थी. उसी दिन उन्होंने आचार्य पद का त्याग भी कर दिया. आचार्य समय सागर जी महाराज को आचार्य पद दिया.
इसके बाद आचार्य श्री गुरुदेव ने वसंत पंचमी के दिन से विधिवत सल्लेखणा धारण कर ली थी. जाग्रत अवस्था में रहते हुए उपवास ग्रहण किया. उन्होंने आहार और संघ काे छोड़ दिया था. साथ ही अखंड मौन भी धारण कर लिया था.
2004 में आश्रम और मंदिर बनाने का काम शुरू हुआ. इसके बाद 2011 में आचार्य विद्यासागर महाराज आए, तो उन्होंने यहां भूमि पूजन किया. तब से यहां निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है. आचार्य विद्यासागर महराज ने यहां 2011 और 2013 में चातुर्मास किया, जिसमें पूरे देश के संत यहां से जुड़े.
आचार्यश्री की महासमाधि के अवसर पर पूरे देश में जहां जैन प्रतिष्ठान बंद रहे. वहीं, पूरे देश में विहार कर रहे मुनिश्री सहित सभी जैन संतों ने निर्जला उपवास रखा. बच्चों ने एकासन व्रत किया. कई जैन साधकों के घरो में चूल्हा नहीं जला.
आचार्य श्री विद्यासागर ने 6 फरवरी को मुनि योग सागर से चर्चा करने के बाद आचार्य पद का त्याग कर दिया था. उन्होंने मुनि समय सागर जी महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा की थी. मुनि समय सागर महाराज के चंद्रगिरी तीर्थ पहुंचने के बाद विधिवत तरीके से उन्हें आचार्य की गद्दी सौंपी जाएगी.
इसके अलावा टीवी पर ही कई लोग आचार्यश्री का अंतिम संस्कार देखते रहे। इस दौरान मप्र, राजस्थान से कई लोग डोंगरगढ़ के लिए भी रवाना हो गए थे। इस दौरान कुछ भक्तों की आंखों में आंसू नहीं थम रहे थे।