दवा दुकानों पर एक ही मॉलीक्यूल की दवा अलग-अलग कीमत पर उपलब्ध होने का प्रमुख कारण का खुलासा हुआ है. दवाओं के बारे में डॉक्टरों को जानकारी देते उनकी क्लीनिक में नजर आने वाले मेडिकल रिप्रजेंटेटिव (MR) के संगठन ने इसकी जानकारी दी.
संगठन के प्रतिनिधि ने बताया कि मौजूदा समय में दवाओं की कीमत उनकी उत्पादन से नहीं, बल्कि मार्केट में ज्यादा होल्ड रखने वाली तीन कंपनियों की दवा की औसत कीमत से तय हो रही है. सरकार नई-पुरानी हर दवा कंपनी को तीनों बड़ी कंपनियों के दवा की औसत कीमत तक अपनी कीमत रखने की आजादी दी है.
ऐसे में दवा बनाने वाली कंपनी की उत्पादन लागत भले 5 रुपए हो, वह उसकी कीमत 500 रुपए (तीनों कंपनियों की दवा की औसत कीमत तक) रख सकती है. चूंकि देश में दवा बनाने वाली अनगिनत निजी कंपनियां हैं, इसीलिए मेडिकल पर एक ही दवा अलग-अलग कीमत पर उपलब्ध होती है. FMRAI (फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रजेंटेटिव एसोसिएशन) के बैनर तले पद्मनाभपुर के आशीर्वाद भवन में एकत्रित हुए इन दवा प्रतिनिधियों ने बताया कि वह जनहित में सरकार की इस नीति का विरोध कर रहे हैं.
क्योंकि कंपनियों पर कोई अंकुश नहीं होने से उनका पेशा डॉक्टरों के बारे में बताने के इतर दवा कि बिक्री करवाना हो गया है. देश भर में उनके संगठन से लगभग 1 लाख मेडिकल रिप्रजेंटेटिव जुड़े हैं. इस दौरान यह भी बात सामने आई कि दाम में अंतर होने का सीधा नुकसान मरीजों व उनके परिजनों को हो रहा है.
लोग किसी भी दवा के कॉलीक्यूल पर ध्यान नहीं देते या फिर उसकी जानकारी नहीं रखते. इसलिए वे जब सलाह के अनुसार दवा लेने जाते हैं तो उन्हें वो दवा जिस कीमत पर बाजार में उपलब्ध है, उसी कीमत पर दी जाएगी. जबकि वही दवा कम कीमत पर भी उसी दुकान में उपलब्ध रहती है.
1974 और 1975 में बनी कमेटी ने दवा की कीमत उनकी उत्पादन वैल्यू से तय करने सुझाव दिया था. अभी कुछ दवाओं की कीमत ऐसे ही तय होती हैं. लेकिन बाकी को छूट दी गई है. इनकी कीमत अधिक बिक्री वाली तीन कंपनियों की दवा की औसत कीमत तक रखी जा सकती है.
दवा विलासिता की वस्तु नहीं है. फिर भी सरकार इसपर 5% से लेकर 28% तक GST लेती है. इससे होने वाली आय का आधा केंद्र सरकार और आधा राज्य सरकार के खाते में जाता है. GST लगने से 100 रु. MRP वाली दवा 5 रु. से लेकर 28 रु. तक महंगी हो जाती है.
FMRAI का मानना है कि हम सबकी आमदनी का 30% हेल्थ से जुड़ी परेशानियों में खत्म होता है. इसके बाद भी हमारे देश में GDP का लगभग 2% हेल्थ पर खर्च किया जा रहा है. विकसित देशों की तरह इसे बढ़ाकर हमारी सरकार को कम से कम 5% कराना चाहिए.
FMRAI ने बताया कि अपने देश में मेडिकल रिप्रसेंटेटिव के लिए कोई नियम नहीं बने हैं. एक कंपनी में एक ही प्रोडक्ट को लेकर काम कर रहे तीन MR को अलग-अलग तरीके से काम करना पड़ता है. इस लिए मेडिकल पर उपलब्ध एक ही दवा की कीमत अलग-अलग होती है. यह स्थिति सभी में डिकल रिप्रसेंटेटिव को फेस करनी पड़ती है. नियम बनने से राहत मिलेगी.
मेडिकल रिप्रजेंटेटिव का मानना है कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से उसके दुष्प्रभाव बढ़े हैं. ऑनलाइन दवा की क्वालिटी के साथ ही उसका दुष्प्रभाव होने से कोई जिम्मेदारी लेने वाला नहीं रहता है. दूसरी सबसे बड़ी बात यह कि मरीज की गोपनीयता भंग होने का खतरा रहता है. इसके अलावा ऑनलाइन खरीदी से अक्सर लोग ठगे भी जाते हैं. कभी दूसरी दवाइयां भी भेज दी जाती है.