जगदलपुर में ऐतिहासिक गोंचा पर्व के उपलक्ष्य पर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र को 56 भोग लगाया गया. फल, मिठाई, चावल से लेकर कई तरह के भोग लगाकर करीब 615 साल से चली आ रही परंपरा निभाई गई. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी वर्चुअली जुड़े.
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कार्यक्रम में पहुंचकर पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस कार्यक्रम में आने वाले थे, लेकिन खराब मौसम की वजह से उनका दौरा रद्द हो गया. रविवार की शाम आयोजित इस कार्यक्रम में शहर के सैकड़ों लोग शामिल हुए. प्रभु के दर्शन करने के लिए जबरदस्त जन सैलाब उमड़ा. इसके साथ ही कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.
भूपेश बघेल ने कहा, बस्तर का दशहरा और गोंचा पर्व अनूठा पर्व है. जो कई संस्कृतियों के संगम का अनुपम उदाहरण है. इन पर्वों से बस्तर और छत्तीसगढ़ को जाना जाता है. उन्होंने इस अवसर पर बस्तर के इतिहास को समृद्ध बताते हुए यहां की संस्कृति को निराली बताया. उन्होंने कहा, बस्तर की संस्कृति को समझने के लिए बस्तर को जानना जरूरी है, क्योंकि तभी इसका आनंद लिया जा सकता है.
भूपेश बघेल ने यहां आयोजित किए जाने वाले गोंचा महा पर्व को आध्यात्मिक दृष्टि के साथ ही यहां के सांस्कृतिक विकास को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा, बस्तर का इतिहास पुराणों में उल्लेखित दंडकारण्य से जुड़ा हुआ है, जो दंडकारण्य उत्कल, आंध्र और महाराष्ट्र तक विस्तृत था. इसलिए बस्तर की संस्कृति का इतिहास और भूगोल भी काफी लंबा-चौड़ा है. उन्होंने कहा, चारों दिशाओं में जो कुछ अच्छा था, उन सभी को बस्तर की स्थानीय संस्कृति ने आत्मसात किया है.
इसीलिए यहां की बोली-भाषाओं में उड़िया, तेलुगु, मराठी, छत्तीसगढ़ी सभी का प्रभाव दिखाई पड़ता है. यहां की परम्पराओं में आसपास की और भी परंपराएं इस तरह घुली-मिली हैं कि अलग-अलग पहचान कर पाना मुश्किल है. गोंचा महा पर्व का इतिहास 615 साल से भी पुराना है. ओडिशा का गुड़िंचा पर्व बस्तर में आकर गोंचा पर्व हो गया. ओडिशा के ब्राह्मण बस्तर में आकर आरण्यक हो गए.