रायपुर मंडल में ऑटोमेटिक सिग्नल का काम पूरा करने में अभी दो साल और लगेंगे. ऑटोमेटिक सिग्नल नहीं होने के कारण अभी दो ट्रेनों के बीच लंबा गैप रखना पड़ रहा है. यही कारण है कि ट्रेनों की स्पीड भी नहीं बढ़ रही है. ऑटोमेटिक सिग्नल लगने से 10 किलोमीटर के दायरे में एक पटरी पर तीन ट्रेनें चल सकेंगी.
इससे यात्रियों के समय की बचत होगी तो वहीं 20 से 25 प्रतिशत ट्रेनों की क्षमता भी बढ़ेगी. दुर्घटनाओं की आशंका भी लगभग खत्म हो जाएगी. इसके साथ ही मुख्यालय में बैठे अधिकारियों को प्रत्येक गाड़ियों की जानकारी हर पल मिल मिलेगी. रायपुर रेलवे स्टेशन से एक दिन में 112 ट्रेनें गुजरती हैं. मुंबई-हावड़ा मार्ग होने से अक्सर ट्रेनें एक के बाद एक चलती हैं. सिग्नल ना मिल पाने की वजह से अक्सर गाड़ियां देर से चलती हैं.
इसकी बड़ी वजह है कि अभी भी रेलवे प्रशासन एब्सोल्यूट सिग्नल सिस्टम से ट्रेनों का संचालन कर रहा है. इससे एक ट्रेन 10 किमी की दूरी तय करने के बाद जब तक अगला स्टेशन पार नहीं करती तब तक दूसरी गाड़ी को रवाना नहीं किया जाता है. अक्सर सिग्नल ना मिलने की वजह से आउटर या फिर स्टेशन पर ट्रेनों को घंटों रोक दिया जाता है. जिससे ट्रेन लेट हो जाती है. इससे यात्रियों की परेशानी बढ़ जाती है. इसलिए रेलवे अब ऑटोमेटिक सिग्नल लगा रहा है.
नई व्यवस्था के तहत स्टेशन यार्ड के डबल डिस्टेंस सिग्नल से आगे प्रत्येक एक किलोमीटर पर सिग्नल लगाए जा रहे हैं. सिग्नल के सहारे ट्रेनें एक-दूसरे के पीछे चलती रहेंगी. अगर आगे वाले सिग्नल में तकनीकी खामी आती है तो पीछे चल रही ट्रेनों को भी सूचना मिल जाएगी. जो ट्रेन जहां रहेंगी, वहीं रुक जाएंगी. इससे दुर्घटनाओं की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी.
ऑटोमेटिक सिग्नल लगाने का काम शुरु हो रहा है. इसे तीन चरणों में इसे लगाया जाएगा. काम पूरा होने में करीब दो साल लगेंगे.