गौरवान्ति करने वाले चंद्रयान-3 की टीम में दुर्ग जिले के चरोदा जी केबिन का होनहार युवा के भरत भी शामिल है. बेहद गरीब परिवार के इस होनहार ने अपनी प्रतिभा के बूते इसरो में नौकरी पाई. उसे आर्थिक रुप से रायपुर एवं रायगढ़ के दो परिवारों ने भी इस कार्य में खुले हाथ से मदद की. आज जैसे ही चंद्रयान-3 ने चंद्रमा पर लैंडिंग की तो भरत के माता-पिता व अन्य स्वजन भी खुशी से उछल पड़े.
G-केबिन की पहचान भिलाई-चरोदा निगम क्षेत्र के श्रमिक बस्ती के रूप में है. इसी बस्ती से निकले होनहार के भरत ने आज इस क्षेत्र को गौरवान्वित कर दिया. अभावों के बीच गुजर करने वाले के चंद्रमौलेश्वर एवं उनकी पत्नी के वनजाझी बुधवार को फूले नहीं समा रहे थे. उनका बेटा के भरत कुमार भी चंद्रयान-3 की टीम में शामिल है और इस टीम ने आज वो कर दिखाया जो अब तक किसी देश ने नहीं कर पाया था. के भरत कुमार बड़ा एवं बहन के लावण्या छोटी है. के भरत कुमार वर्तमान में इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) में बतौर मैकेनिकल इंजीनियर पदस्थ हैं.
के भरत कुमार ने चरोदा बीएमवाय स्थित केंद्रीय विद्यालय से 12 वीं तक की शिक्षा की. के भरत कुमार के घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब रही है. पिता व माता दोनों ही जी केबिन में ही टपरानुमा होटल चलाते थे. बाद में होटल में कमाई न होने पर पिता के चंद्रमौलेश्वर ने बैंक में गार्ड की नौकरी करने लगे. मां अकेली ही होटल चलाती है. ऐसे में स्कूल जाने से पहले और स्कूल से आने के बाद भरत होटल में मां का हाथ बंटाता था. इतना ही नहीं ग्राहकों के जूठे बर्तन भी मांजता था. इन सबके बावजूद वह पढ़ाई के लिए समय निकालता.
पिता के चंद्रमौलेश्वर बताते हैं कि के भरत देर रात तक घर में पढ़ता था. वह कक्षा- 1 से ही प्रतिभाशाली रहा. 12वीं में उसने टॉप किया था और पीसीएम में 99% अंक पाया था. स्कूल में उस समय उसकी मैथ्स की टीचर रही बनानी बनर्जी बताती हैं कि के भरत कुमार काफी होनहार बच्चा था. कभी किसी सवाल को वह समझ नहीं पाता था तो वह तब तक स्कूल में ही खड़ा रहता जब तक शिक्षक उसका डाउट क्लियर ना कर देते. के भरत कुमार ने IIT धनबाद से पढ़ाई की है.