देश में ही नहीं बल्कि विदेश में बैठा हर व्यक्ति अब घर बैठे मां दंतेश्वरी के मंदिर में आस्था की ज्योत जलवा सकेगा. इस शारदीय नवरात्र पर बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी मंदिर की कमेटी ने ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा शुरू की है.
इतना ही नहीं ज्योति कलश के लिए लगने वाली राशि भी ऑनलाइन पेमेंट की जा सकेगी. भक्तों की आस्था को ध्यान में रखते हुए मंदिर समिति ने ये फैसला लिया है.
मंदिर समिति ने https//maadanteshwari.in नाम से वेबसाइट लिंक जारी की है. इस वेबसाइट के जरिए भक्त ज्योत के अलावा भंडारा शुल्क और दान राशि भी ऑनलाइन माध्यम से दे सकते हैं.
इसके अलावा मंदिर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की जानकारी भी वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगी. वहीं, मंदिर में होने वाली दैनिक आरती और अन्य अनुष्ठानों का शेड्यूल भी उपलब्ध करवा दिया गया है.
दरअसल, दंतेवाड़ा का मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ भी देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है. मां दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी मानी जाती हैं. शारदीय नवरात्र हो या चैत्र नवरात्र देवी के मंदिर में लोगों की भारी भीड़ होती है. देश-विदेश से श्रद्धालु माता के दर्शन करने दंतेवाड़ा पहुंचते हैं. ऐसा माना जाता है कि मां सबकी मुरादें पूरी करती हैं.
आदिकाल से मां दंतेश्वरी को बस्तर के लोग अपनी कुल देवी के रूप में पूजते आ रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि, बस्तर में होने वाला कोई भी विधान माता की अनुमति के बगैर नहीं किया जाता है. बस्तर ही नहीं तेलंगाना के कुछ जिले और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के लोग भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी मानते हैं.
वहां के लोग भी बताते हैं कि ‘काकतीय राजवंश’ जब यहां आ रहा था तब हम कुछ लोग वहां रह गए थे. इसीलिए हम भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजते हैं. सन 1190 के बाद जब कल्याण के चालुक्यों का साम्राज्य टूटकर बिखर गया तब उसके एक भाग के स्वामी वारंगल के मूलतः गोंड काकतीय हुए.
मां दंतेश्वरी मंदिर का गर्भगृह जहां देवी की मूर्ति है वो सदियों पहले ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया था. बताया जाता है कि, शुरुआत में जब मंदिर यहां स्थापित हुआ था तो उस समय सिर्फ गर्भगृह ही हुआ करता था, बाकी हिस्सा खुला था. लेकिन, जैसे-जैसे राजा बदले तो उन्होंने अपनी आस्था के अनुसार मंदिर का स्वरूप भी बदला. लेकिन, गर्भगृह से कोई छोड़खानी नहीं की गई.
गर्भगृह के बाहर का हिस्सा बेशकीमती इमारती लकड़ी सरई और सागौन से बना हुआ है. जिसे बस्तर की रानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने बनवाया था.
दंतेवाड़ा जिला छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में स्थित है. दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में माता का मंदिर है. अगर कोई भक्त रायपुर से माता के दरबार आना चाहता है तो सड़क मार्ग से करीब 4 सौ किमी की दूरी तय करनी होगी.
रायपुर के बाद धमतरी, कांकेर, कोंडागांव और अंतिम बस्तर (जगदलपुर) जिले की सरहद पार कर दंतेवाड़ा पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा हैदराबाद और रायपुर से भक्त फ्लाइट से भी जगदलपुर और फिर वहां से सड़क मार्ग के जरिए दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं.
ओडिशा, तेलंगाना, और महाराष्ट्र के भक्तों के लिए भी यहां आना बेहद आसान है. ओडिशा के भक्त पहले जगदलपुर, तेलंगाना के सुकमा और महाराष्ट्र के बीजापुर जिला होते हुए सीधे दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं. ये तीनों जिले दंतेवाड़ा के पड़ोसी जिले हैं.