दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे जोन हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है. ट्रेनों के परिचालन में भी ऑटो सिग्नलिंग सिस्टम लगाए जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ में भिलाई से नागपुर तक 267 किलोमीटर लंबे इस सिस्टम से एक ही ट्रैक पर कई ट्रेनें एक साथ दौड़ रही हैं.
इस नई व्यवस्था में स्टेशन यार्ड के एडवांस स्टार्टर सिग्नल से आगे करीब एक 1-1.5 किलोमीटर पर सिग्नल लगाए गए हैं. इसके सहारे ट्रेनें एक-दूसरे के पीछे चलती रहती हैं. अगर किसी कारण से आगे वाले सिग्नल में तकनीकी खामी आती है, तो पीछे चल रही ट्रेनों को भी इसकी सूचना मिल जाएगी. ऐसे में जो ट्रेन जहां रहेंगी, वहीं रूक जाएंगी. एक ट्रैक पर चल रही ट्रेनों के आपस में टकराने का कोई खतरा भी नहीं रहेगा.
रेल प्रशासन का दावा है कि सुरक्षा के लिहाज से ट्रेन संचालन में सिग्नलिंग सिस्टम की भूमिका अहम है. ट्रेन संचालन में सुरक्षा को समय-समय पर और बेहतर किया जाएगा. लाइन क्षमता में बढ़ोतरी के लिए सिग्नलिंग सिस्टम का आधुनिकीकरण किया जाता है. ट्रेनों की गति तेज करने और सुरक्षित सफर के लिए इस दिशा में काम किया जा रहा है.
ऑटोमेटिक ब्लॉक सिग्नल सिस्टम के लागू होने के बाद एक ही रूट पर 1 किमी के अंतर पर एक के पीछे एक ट्रेनें चलती हैं. इससे रेलवे लाइनों पर ट्रेनों की रफ्तार के साथ ही संख्या भी बढ़ गई है. कहीं भी खड़ी ट्रेन को निकलने के लिए आगे चल रही ट्रेन के अगले स्टेशन तक पहुंचने का इंतजार भी नहीं करना पड़ता है. स्टेशन यार्ड से ट्रेन के आगे बढ़ते ही ग्रीन सिग्नल मिल जाता है. यानी एक ब्लॉक सेक्शन में एक के पीछे दूसरी ट्रेन आसानी से चलती है. ट्रेनों के लोकेशन की जानकारी भी मिलती रहती है.
यह काफी कम खर्चीला है. पहले कॉपर के केबल लगाए जाते थे, जिसमें लागत ज्यादा आती थी. अब ऑप्टिकल फाईबर केबल लगाए जा रहे हैं. जिसकी लागत भी कम होती है. चोरी होने का भी भय नहीं रहता है. यह रिंग प्रोटेक्टेड केबल होते है, जो जल्द खराब भी नहीं होते.
बिलासपुर से दाधापारा, बिल्हा, गतौरा, जयरामनगर, उसलापुर, घुटकू, चांपा से कोरबा, नागपुर से भिलाई के 362 किमी सेक्शन ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम से लैस है. 22 और 23 सितंबर को जयरामनगर-लटिया-अकलतरा सेक्शन पर काम चल रहा है. इस काम के पूरे होने के बाद जयरामनगर-लटिया-अकलतरा के बीच 13 किलोमीटर रेलखंड भी इसी सिग्नल से लैस हो जाएगा.