केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रायपुर आकर राज्य सरकार पर 8 लाख टन चावल न भेजने के आरोप के बाद धान पर घमासान शुरू हो गया है. मिलर्स का कहना है कि केंद्र सरकार एक क्विंटल धान में 67 किलो चावल जमा करने के लिए कह रही है, जबकि छत्तीसगढ़ में होने वाले धान में केवल 54 किलो चावल ही मिलता है.
बाकी चावल कहां से लाकर जमा करें. छह साल पहले हाईकोर्ट के निर्देश पर टेस्ट मिलिंग भी करवाई गई थी. जिसमें केंद्र के अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ में आकर जांच की थी और अपनी रिपोर्ट में यह माना था कि एक क्विंटल अरवा में 52-54 किलो और उसना में 60 किलो ही चावल मिलता है.
एक महीने दिल्ली में हुई बैठक में मंत्री गोयल के सामने टेस्ट मिलिंग की आवाज उठी. रायपुर दौरे के दौरान भी मिलर्स ने मिलकर जांच करवाने का अनुरोध किया. मिलर्स ने केंद्रीय अतिरिक्त सचिव रिचा शर्मा को भी पत्र लिखा, लेकिन अभी तक कोई निर्देश नहीं आया.
गोयल के दौरे के बाद राज्य सरकार ने सभी मिलर्स से 30 सितंबर तक चावल जमा करने के आदेश दे दिए हैं. जो मिलर्स बाकी चावल नहीं देंगे उनकी प्रोत्साहन राशि भी रोकी जा सकती है. ऐसे में मिलर्स को समझ नहीं आ रहा कि वे चावल लाएं तो कहां से लाएं.
मिलर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष योगेश अग्रवाल का कहना है कि भूपेश सरकार ने प्रोत्साहन राशि 40 से बढ़ाकर 120 रुपए कर दी, लेकिन पैसा समय पर नहीं मिल रहा है. मिलर्स को जितना धान मिलता है, उससे वह पूरी पूर्ति नहीं कर सकता. मैं पिछले 10 साल से इसकी लड़ाई लड़ रहा हूं कि एक क्विंटल धान से कितना चावल निकल रहा है इसकी जांच तो हो. लेकिन कोई भी सरकार सुनने को ही तैयार नहीं है. केंद्र ने नियम तो बना दिया लेकिन जो पंजाब की भौगोलिक स्थिति है, वैसी छत्तीसगढ़ की नहीं है. इसे कैसे समझाया जाए.
मिलर्स से 30 सितंबर तक चावल जमा करने के आदेश मिले. जो चावल नहीं देंगे उनकी प्रोत्साहन राशि रोकी जा सकती है. ऐसे में मिलर्स को समझ नहीं आ रहा कि चावल लाएं तो कहां से लाएं.
मिलर्स कह रहे- इतनी राशि मिलना है बाकी
- 2022-23 की प्रोत्साहन राशि की एक भी किश्त नहीं मिली है. {2021-22 की दूसरी किश्त बाकी हैं. 2020-21 का चावल परिवहन, बारदाना और एफआर की राशि अब तक नहीं मिली हैं.
- 2019-2020 के चावल परिवहन का पैसा नहीं मिला
- 2018-2019 की हम्माली का पैसा नहीं दिया.
मिलर्स एसोसिएशन के सचिव प्रमोद अग्रवाल ने कहा की केंद्र को एक बार टेस्ट मिलिंग करवाना चाहिए. कई बार यह आवाज उठा चुके हैं. यहां धान में उतना चावल नहीं होता, जितना केंद्र ने नियम बना रखा है.