
छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में BJP 5 सालों बाद फिर से सत्ता में लौटी है. लेकिन राज्य गठन के बाद ऐसा पहली बार होगा जब नई विधानसभा में राजपरिवार का कोई सदस्य नहीं रहेगा. राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले सारे नेता चुनाव हार गए हैं. वहीं कई ऐसे भी प्रत्याशी रहे जो विरासत में मिली राजनीति को इस चुनाव में आगे नहीं बढ़ा पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

राजपरिवार से कांग्रेस और BJP ने 3-3 और आम आदमी पार्टी ने 1 उम्मीदवार खड़ा किया था. 2000 में राज्य के गठन के बाद से सभी 5 कार्यकालों में छत्तीसगढ़ विधानसभा में हमेशा राजपरिवारों के सदस्य रहे हैं. जबकि 6 प्रत्याशी ऐसे थे, जिन पर सीट जीतने के साथ ही परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की भी जिम्मेदारी थी. लेकिन इस चुनाव में दिग्गज राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को करारी शिकस्त मिली.
पहले राजपरिवार के सदस्यों की बात करें तो पहला नाम डिप्टी CM TS सिंहदेव का आता है, जिन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह बैकुंठपुर से कांग्रेस प्रत्याशी अंबिका सिंहदेव और बसना सीट से देवेन्द्र बहादुर सिंह को भी हार मिली. बीजेपी से जिन राजपरिवार के सदस्यों को हार का सामना करना पड़ा, उनमें संयोगिता सिंह जूदेव, प्रबल प्रताप सिंह जूदेव और संजीव शाह शामिल हैं. इसके अलावा आम आदमी पार्टी के खड्गराज सिंह भी चुनाव हार गए हैं.

दिग्गज राजनीतिक परिवारों से आने वाले अरुण वोरा, पंकज शर्मा, छविन्द्र कर्मा, अमितेश शुक्ल और रूद्र गुरू को हार मिली और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की राजनीतिक विरासत सम्भाल रही उनकी पत्नी रेणु जोगी और बेटे अमित जोगी को भी करारी हार का सामना करना पड़ा.
सरगुजा के राजपरिवार के वंशज TS सिंहदेव अपनी अंबिकापुर सीट BJP के राजेश अग्रवाल से 94 वोटों के मामूली अंतर से हार गए. सिंहदेव को 2018 के चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था, जिसमें कांग्रेस सत्ता में आई थी, उन्होंने 2008, 2013 और 2018 में लगातार 3 बार विधायक के रूप में कार्य किया था.
सिंहदेव परिवार उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में प्रभाव रखता है. जहां 2018 के चुनावों में इस क्षेत्र के सभी 14 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, वहीं इस बार BJP ने इन सीटों पर जीत हासिल कर पासा पलट दिया.
सरगुजा क्षेत्र से कांग्रेस से ही राजपरिवार की सदस्य अंबिका सिंहदेव अपनी बैकुंठपुर सीट BJP के भैयालाल राजवाड़े से 25,413 वोटों से हार गईं, जिन्हें उन्होंने 2018 के चुनाव में हराया था.
अंबिका सिंहदेव कोरिया के शाही परिवार से आती हैं जो लंबे समय से राज्य की राजनीति में सक्रिय हैं. इस परिवार के एक सदस्य, रामचंद्र सिंहदेव, ने अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के तहत छत्तीसगढ़ के पहले वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया था.
बसना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार देवेन्द्र बहादुर सिंह को हार मिली है. फुलझर क्षेत्र के पूर्व गोंड शाही परिवार के सदस्य, कांग्रेस नेता देवेंद्र बहादुर सिंह को बसना निर्वाचन क्षेत्र में BJP के संपत अग्रवाल ने 36,793 वोटों से हराया है. 4 बार के विधायक रहे देवेन्द्र सिंह ने 2000-2003 तक अजीत जोगी के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था.
बीजेपी के जिन 3 राजपरिवार के सदस्यों को इस बार हार का सामना करना पड़ा, उनमें सरगुजा संभाग के जशपुर के प्रभावशाली जूदेव राजघराने के 2 सदस्य थे. BJP के कद्दावर दिवंगत नेता दिलीप सिंह जूदेव इसी परिवार से थे.
दिवंगत जूदेव के पिता विजय भूषण जूदेव, जो जशपुर शाही परिवार के राजा थे. जूदेव ने लोकसभा सदस्य के रूप में भी काम किया था. वे केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में पर्यावरण और वन राज्य मंत्री थे.
उनके बेटे युद्धवीर सिंह जूदेव चंद्रपुर सीट से 2 बार विधायक रह चुके हैं, जो निकटवर्ती बिलासपुर संभाग में आती है. युद्धवीर की पत्नी संयोगिता सिंह को चंद्रपुर सीट से लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा है.
उन्हें कांग्रेस के रामकुमार यादव ने 15,976 वोटों से हराया था. विशेष रूप से, यादव ने 2018 के विधानसभा चुनाव में भी संयोगिता सिंह को हराया था. दिलीप सिंह जूदेव के दूसरे बेटे प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कोटा विधानसभा सीट से कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव से 7,957 वोटों से हार गए.
अंबागढ़ चौकी के पूर्व नागवंशी गोंड शाही परिवार के वंशज, पूर्व विधायक संजीव शाह को BJP ने मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले में अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित मोहला-मानपुर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा था.
शाह मोहला-मानपुर क्षेत्र से मौजूदा कांग्रेस विधायक इंद्रशाह मंडावी से 31,741 वोटों से हार गए.
आम आदमी पार्टी ने कवर्धा क्षेत्र से लोहारा रियासत के सदस्य खड्गराज सिंह को मैदान में उतारा था. हालांकि, वे सिर्फ 6,334 वोट हासिल कर सके और तीसरे स्थान पर रहे. कवर्धा में मुख्य मुकाबला BJP और कांग्रेस के बीच रहा. जहां BJP के विजय शर्मा ने कांग्रेस नेता और राज्य मंत्री मोहम्मद अकबर को 39,592 वोटों से हराया.
अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत नेता मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा को इस चुनाव में हार मिली. 1993 में विधानसभा अरुण वोरा पहली बार जीते थे. वे कांग्रेस के दुर्ग शहर के अध्यक्ष और छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश महामंत्री भी रह चुके हैं. साल 2018 में वोरा इसी सीट से जीतकर आए थे. लेकिन इस चुनाव में BJP के गजेन्द्र यादव ने उन्हें 48697 वोटों से हराया.
मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के पोते, पूर्व मुख्यमंत्री श्यामचरण शुक्ल के बेटे और केन्द्रीय मंत्री रहे विद्याचरण शुक्ल के भाई अमितेश शुक्ल इस चुनाव में परिवार की पारम्परिक सीट नहीं बचा पाए.
श्यामाचरण शुक्ल पहली बार 1957 में राजिम सीट से विधायक बने। इसी सीट से वे साल 1962, 1967, 1972, 1990, 1993 और 1998 में विधायक बने. इसी बीच श्यामचरण शुक्ल तीन मौकों पर साल 1969-1972, 1975-1977 और 1989-1990 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. अमितेश भी यहां से 4 बार प्रत्याशी और 2 बार विधायक बने थे. लेकिन इस चुनाव में
राजिम विधानसभा सीट से अमितेश शुक्ल को BJP के रोहित साहू ने 11911 वोटों से शिकस्त दी.
कांग्रेस के कद्दावर नेता सत्यनारायण शर्मा ने खुद चुनाव ना लड़कर बेटे पंकज शर्मा को रायपुर ग्रामीण की सीट से चुनाव लड़ाया. 2008 में परिसीमन के बाद अस्तिव में आई इस सीट में पहली बार सत्यनारायण शर्मा को भी नंदे साहू से हार का सामना करना पड़ा था लेकिन साल 2013 और 2018 में शर्मा ने लगातार जीत हासिल की.
लेकिन इस चुनाव में रायपुर ग्रामीण की जनता ने पंकज शर्मा की जगह BJP के मोतीलाल साहू पर भरोसा जताया और इस सीट से साहू ने 35750 वोटों से जीत हासिल की.
बस्तर टाइगर कहे जाने वाले महेन्द्र कर्मा और देवती कर्मा के बेटे छविन्द्र कर्मा को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. दंतेवाड़ा विधानसभा सीट में 2013 में कांग्रेस की देवती कर्मा ने जीत दर्ज की थी. देवती ने BJP उम्मीदवार भीमा मंडावी को शिकस्त दी थी। इसके बाद 2018 में समीकरण पलट गया.
तब कांग्रेस से देवती कर्मा ही उम्मीदवार थीं. उनके सामने BJP ने भी अपना कैंडिडेट रिपीट किया था. लेकिन इस दफे देवती कर्मा को हार मिली और भीमा मंडावी दंतेवाड़ा के विधायक चुने गए लेकिन नक्सलियों ने भीमा मंडावी की हत्या कर दी और इसके बाद हुए उपचुनाव में मंडावी की पत्नी ओजस्वी को देवती कर्मा ने हरा दिया. इस चुनाव में BJP ने जिला अध्यक्ष चैतराम अटामी को खड़ा किया और उन्होंने 16803 वोटों से छविन्द्र कर्मा को शिकस्त दी.
जोगी परिवार पहले मरवाही और अब कोटा की पारम्परिक सीट खो चुका है. कोटा विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1965 को हुई थी. इस सीट से लगातार कांग्रेस जीतती आ रही है. छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी की सीट हैं. कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी JCCJ बनाने के बाद भी कोटा की जनता ने साल 2018 में रेणु को ही जीत दिलाई.
लेकिन इस चुनाव में रेणु जोगी पीछे खिसकर तीसरे स्थान पर आ गई. उन्हें महज 8884 वोट मिले. जबकि दूसरे नंबर पर BJP प्रत्याशी प्रबल प्रताप जूदेव रहे. प्रबल को 65522 वोट मिले और जीत 73479 वोटों के साथ कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव की हुई.
इसी तरह कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के क्षेत्र पाटन से अमित जोगी को भी करारी हार मिली. यहां मुख्य मुकाबला भूपेश बघेल और विजय बघेल के बीच था. जिसमें भूपेश बघेल ने 19723 वोटों से जीत हासिल की. जबकि अमित जोगी को कुल मिलाकर 4822 वोट ही मिले.