जब भी खेती करने की बात आती है तो पुरुषों का ही वर्चस्व माना जाता रहा है। लेकिन बीते कुछ सालों में इस क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव आया है। बड़ी संख्या में महिलाएं इससे जुड़ रही हैं। यही नहीं शिक्षित और कॉर्पोरेट जगत से जुड़ी महिलाएं भी अब खेती के जरिये अधिक कमाई कर रही हैं।
छत्तीसगढ़ में ऐसे बदलाव की दो कहानियां…
अब सब्जियों को भेजा जायेगा विदेश
कुरूद के गांव चरमुड़िया की स्मारिका ने कम्प्यूटर साइंस में बीई फिर एमबीए किया। और फिर मल्टीनेशनल कंपनी से जुड़ कर सालाना 10 लाख के पैकेज में काम किया। 34 साल की स्मारिका ने बताया कि, पिता दुर्गेश किसान हैं। जनवरी 2020 में लिवर ट्रांसप्लांट के बाद उनकी सेहत खराब रहने लगी। छोटे भाई और बहन भी हैै। ऐसे में हमारे 23 एकड़ खेत और वहां काम करने वाले 100 मजदूरों का क्या होता।
बस, तब से खेती की जिम्मेदारी मैंने ले ली। मैंने पिता को काम करते देखा है, इसलिए कुछ जानकारी पहले से ही थी। शुरुआत में परेशानियां हुई लेकिन धीरे-धीरे सीखने लगी।’ स्मारिका बताती हैं,‘बेहतरीन क्वालिटी के बीज लगाने पर अच्छी फसल मिलने लगी। गुणवत्ता के कारण दिल्ली, यूपी, आंध्र, कोलकाता, बिहार व ओडिशा तक सब्जियों की डिमांड है। नए साल में पैदावार विदेश भेजने की तैयारी है।’
महासमुंद के कमरौद गांव में छह साल पहले 15 एकड़ से खेती शुरू करने वाली 32 साल की वल्लरी अब तीन गांवों में खेती कर रही हैं। कमरौद में 24 एकड़ जमीन में मिर्च, अमरुद, बांस, पपीता, नारियल, स्ट्राबेरी पर फोकस है। वल्लरी बताती हैं,‘एमटेक करने के बाद सिर्री गांव से खेती शुरू की। कमरौद के करीबी गांव में 22 एकड़ की खेती कर रही हूं।’ वल्लरी ने पापा ऋषि से खेती का काम सीखा।
वे बताती हैं,‘शुरू में लोग ताना देते थे कि लड़की होकर खेती करती है। पर अब महासमुंद के हर गांव के महिला समूह मुझसे उन्नत किस्म से खेती सीख रहे हैं। मेरा काम देखकर आईजीकेवी ने मुझे बोर्ड मेंबर बनाया है। मैं हमेशा पढाई करती हूं। और कीटों को नियंत्रण करने के लिए भी नए-नए प्रयोग करती हूं। और अगर व्याह काम करती है इस बारे में दूसरे किसानों को भी बताती हूँ।