सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने दो अधिवक्ताओं को बनाया कि, न्यायमंत्री 16 जनवरी से पहले पूरी जानकारी हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष रखी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार छत्तीसगढ़ के हाई कोर्ट ने प्रदेश के सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक प्रकरणों की जानकारी जुटाने के लिए दो अधिवक्ताओं को न्याय मित्र नियुक्त कर दिया है। साथ ही न्याय मित्र प्रदेश के जिला कोर्ट के अलावा निचली अदालतों में लंबित प्रकरणों के संबंध में जानकारी जुटाएंगे और अपराध की प्रकृति के संबंध में स्पष्ट जानकारी मिलते ही पूरी जानकारी 16 जनवरी से पहले हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के पेश करेंगे। इस दिन डिवीजन बेंच में जनहित याचिका पर भी सुनवाई होगी ।
सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए देश भर के हाई कोर्ट को सांसदों व विधायकों के खिलाफ पांच साल या इससे अधिक समय से चल रहे आपराधिक प्रकरणों के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। साथ ही इन मामलों के शीघ्र निराकरण के लिए जो कदम उठाएंगे उनके बारे में भी विस्तार से जानकारी देने के लिए निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एपी गोस्वामी के अगुवाई वाली डिवीजन बेंच में सुनवाई की गई, इस प्रकरण की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ता डा. निर्मल शुक्ला व अर्जित तिवारी को न्यायमित्र बनाया है। उन्हें ऐसे सांसद व विधायक की सूची पेश करने के लिए कहा है कि, जिनके खिलाफ विभिन्न अदालतों में आपराधिक प्रकरण चल रहे हैं। डिवीजन बेंच ने प्रदेशभर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश को इस संबंध में जानकारी पेश करने के लिए कहा गया है। याचिका अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर आपराधिक प्रकरणों में दोषी ठहराए जाने वाले जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने व किसी भी प्रकार के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में इस तरह के प्रकरणों की सुनवाई के लिए रजिस्ट्रार जनरल ने स्पेशल डिवीजन बेंच का गठन किया है। चीफ जस्टिस एके गोस्वामी की अगुवाई वाले डिवीजन में सुनवाई हुई और पहले ही दिन दो अधिवक्ताओं को न्याय मित्र बना दिया गया। न्याय मित्रों को पूरी सूची सौंपने के निर्देश मिले और न्याय मित्रों द्वारा सौंपी जाने वाली रिपोर्ट का डिवीजन बेंच अध्ययन किया जायेगा। उसके बाद पूरी सूची सुप्रीम कोर्ट को दी जाएगी। इन्ही सब बातों से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।