रायपुर- आज श्री 1008 विमलनाथ भगवान जी का मोक्ष कल्याणक महोत्सव समाज के सभी वरिष्ठ जन और महिला मंडल के सहयोग से मनाया गया। इस पवित्र अवसर पर सामूहिक रूप से निर्वाण लाडू चढ़ाया गया, जो विशेष श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
इस विशेष पूजा में समाज के कई प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे, जिनमें रायपुर के जैन डेंटल हॉस्पिटल के डेंटल स्पेस्लिस्ट श्री अरविंद जैन जी, जैन सॉफ्टवेयर फाउंडेशन के डायरेक्टर श्री सोहिल जैन जी , श्री यशोधर सिघाई जी, श्री मानमल जी और श्री सुमत प्रकाश जी शामिल थे। उनकी उपस्थिति ने महोत्सव की गरिमा को और बढ़ाया।
समाज के सभी सदस्यों ने मिलकर इस पवित्र आयोजन में भाग लिया और भगवान विमलनाथ जी के चरणों में अपनी भक्ति अर्पित की। इस अवसर ने समाज को एकजुट किया और सभी ने मिलकर भगवान से आशीर्वाद प्राप्त किया।
श्री विमलनाथ जी का जन्म माघ शुक्ल त्रितीया के दिन हुआ था, जब बारहवें तीर्थंकर को मोक्ष पधारे हुए बहुत काल व्यतीत हो चुका था। कम्पिलपुर के राजा क्रतवर्मा और उनकी महारानी श्यामादेवी को प्रभु के जनक-जननी होने का परम-सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्री विमलनाथ जी ने यौवन में पदार्पण किया और माता-पिता ने उनका पाणिग्रहण अनेक सुन्दर राजकन्याओं से कराया। पिता के पश्चात उन्होंने राजपद का दायित्व भी वहन किया और अपने विमल शासनकाल में उनका विमल सुयश चतुर्दिक प्रसृत हुआ।
माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन महाराज विमलनाथ, मुनि विमलनाथ बने और तप और ध्यान की साधना में निमग्न रहते हुए दो वर्ष पश्चात पौष शुक्ल षष्ठी के दिन प्रभु केवली बने। तीर्थ की रचना कर तीर्थंकर पद को उपलब्ध हुए। मन्दर नामक मुनि प्रभु के ज्येष्ठ शिष्य और प्रमुख गणधर थे और उनके अतिरिक्त चौपन गणधर और भी थे। धर्म-परिवार में अड़सठ हजार साधु, एक लाख आठ सौ साध्वियाँ, दो लाख आठ हजार श्रावक और चार लाख चौबीस हजार श्राविकाएँ थीं। तृतीय बलदेव भद्र और स्वयम्भु नामक वासुदेव प्रभु के अनन्य भक्त थे।
आषाढ़ कृष्णा सप्तमी के दिन सम्मेदशिखर पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया।
भगवान विमलनाथ जी के चरणों में शूकर का प्रतीक पाया जाता है। शूकर प्राय: मलिनता का प्रतीक है, लेकिन जब ऐसा मलिन वृत्ति वाला पशु भगवान विमलनाथ जी के चरणों में जाकर आश्रय लेता है, तो वह ‘वराह’ कहलाने लगता है। एक समय ऐसा आता है जब भगवान विष्णु भी वराह का रूप धारण कर दुष्ट राक्षसों का संहार करने लगते हैं। यह प्रभु का रूप स्वयं विष्णु धारण करते हैं। शूकर के जीवन से हमें दृढ़ता और सहिष्णुता का गुण ग्रहण करना चाहिए।